Friday, October 1, 2010

Uska Shehar

आज भी उस शहर के चक्कर लगा आता हूँ
वो बाजारों वो ठेलो वो दुकानदारों से मुलाक़ात कर आता हूँ
मेरा हाथ हाथ में लेकर जिन राहों को गौर से देखा तुने
उन राहों पर ज़न्नत को धुन्दती निगाहों में कुछ तो अपनापन आज भी हैं

वो दुकाने जहा से तू अपने लिए रेशम ख़रीदा करती थी
पर सजा रेशम आज भी तेरी मौजूदगी की निशानी ही तो हैं
अलग अलग रिश्तों के लिए कुछ न कुछ खरीद भी लेता हूँ
की उन दुपट्टों की भीड़ में रुसवाई से डरता चेहरा उस ख़ास का ही हैं

पर शायद तू भी इस शहर को, इन गलियों को छोड़ चुकी हैं
वो कलियाँ जो कभी तेरी खुशबु से गुलज़ार रहा करती थी
इस मौसम इ बहार में तेरी बेरुखी बयां कर रही हैं
मेरा पैगाम देना तो दूर तेरे ज़िक्र पर ही जोर से हंसती मालूम पड़ती हैं

वो मकान जिसके नीचे बैठकर घंटों तेरे आने का इंतज़ार किया करता था
से आज भी तेरी खोज खबर लेने कभी  कभार आ जाया करता हूँ मैं
मेरे बिना कुछ पूछे ही तेरे न जाने कितने किस्से सुनाता हैं मुझे
न वो बताता न मैं पूछता, पर मकानों के पते बदले भी एक उम्र हो चुकी हैं

जाते जाते बस इन पूरानी राहों से वादे लेकर जाता हूँ
की कभी कोई पलट कर मेरा पता पूछे तो यहीं कहना
इन्ही राहों पर काटीं हैं उम्र किया हैं सफ़र तमाम
यहीं सोचकर की किसी मोड़ पर तुझे मेरा इंतज़ार आज भी हैं

4 comments:

  1. kya baat hai...yaar....tera fan ho gaya main

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  2. vishal tu nahin jaanta tere yeh do shabd mere liye kitne inspiring hain........aapki soch se koi aur b ithtafaq rakhta ho isse badi taarif kuch nahin ho sakti.........

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  3. wonderful...
    its too good....
    its simply awesome

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