Thursday, August 18, 2011

मैं

मैं  वो भावना हूँ जो अल्फाज़ धुन्ड़ता हैं, 
अपनी पहचान बनाने के लिए हंसकर तो कभी रोकर 
अनजाना डर रोकता हैं,  नयी नयी राहों पर चलने से 
पर मंजिलों की खुशबु आती हैं,
इन्ही न देखी न सुनी राहों से कही 
कहता हैं यह चेतन न रोको न टोको मुझे
बह जाने दो मुझे वक़्त के दरिया में कहीं
जो न मिल सके हम फिर कभी
करना न उदास अपनी आँखों को 
देख कर आसमान में पंछी को किसी
कर लेना याद मुझ पंथी को...

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