छोटी गुड्डू ने सुबह सुबह से रो रोकर घर सर पे उठा रक्खा था, बस एक ही ज़िद, टूटी चप्पल सही कराने की। चप्पल वैसे ही काफी पुरानी हो चुकी थी तो पापा को लगा कि इसको सही कराने से अच्छा लाड़ली को नयी चप्पल ही दिला दी जाये। शाम को दफ्तर से आते वक़्त पापा गुड्डू के लिए रंग बिरंगी चप्पल ले कर आये और आते ही गुड्डू को आवाज दी। गुड्डू चिड़ी चिड़ी सी पापा के पास आई, पापा ने बैग से चप्पल निकाल के गुड्डू को पहना दी। एक पल तो गुड्डू को चप्पल बहुत पसंद आई पर दूसरे पल जैसे ही उसे अपनी पुरानी चप्पल याद आई , फुट फुट के रोना शुरु। कहने लगी मुझे वही चप्पल चाहिए।
अगले दिन मम्मी जैसे ही घर से जाने को हुई, गुड्डु मम्मी से चिपक के बोली, मैं भी चलूंगी चप्पल सही करवाने। मम्मी बोली, बेटा तू क्या करेगी, मैं खुद सही करवा लायुंगी। उदास गुड्डू कुछ न बोली। मम्मी ने चप्पल सही करवाके गुड्डू को दे दी, गुड्डू ख़ुशी ख़ुशी चप्पल पहनके खेलने चली गयी। पर शाम को वही पुराना राग , चप्पल फिर से टूट गयी और गुड्डू का रोना शुरू।
घर में किसी ने बोला भी कि शायद गुड्डी चप्पल खुद ही तोड़ देती है बाजार जाने को पर मम्मी ने सुना अनसुना कर दिया और अगले दिन चप्पल सही करवाने गुड्डू को भी साथ ले गयी। मोची के यहाँ चप्पलों का ढेर लगा था बोला बहनजी कम से कम दो घण्टे लगेंगे आपका नंबर आने में। मम्मी बोली गुड्डू चल चप्पल यही छोड़ देते है दो घण्टे बाद आकर ले जायेंगे। पर गुड्डू को तो मम्मी की बात सुनाई ही नहीं दे रही थी , टूटी चप्पल एक कोने में पड़ी थी और गुड्डू मोची को काम करते देखने में मग्न थी।
- पंथी